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पाकिस्तान के दोस्त ने दी भारत, को धमकी अरमेनिया को ना दे हाथियार

अरमेनिया को ना दे हाथियार भारत,अजरबैजान

इसका मामला भी भारत-पाकिस्तान और कश्मीर जैसा ही है.

आर्मेनिया ईसाई बहुल Country है और अज़रबैजान मुस्लिम बहुल देश Country हैं. 100 साल पहले. यानी पहले विश्वयुद्ध के वक्त ये पूरा इलाका एक ही देश था और ट्रांस-कॉकेशियन फेडरेशन का हिस्सा भी था.

1918 में पहला विश्वयुद्ध खत्म हुआ तो तीन देश बना दिए गए थे. इनमें से- आर्मेनिया, अज़रबैजान और जॉर्जिया. अब एक त रफ वर्ल्ड वॉर खत्म हो रहे थें और उधर रूस में बॉल्शेविक क्रांति हो रही थी.

1920 के दशक में जोसेफ स्टालिन ने अज़रबैजान और जॉर्जिया को भी सोवियत संघ यानी USSR में भी शामिल कर लिया और दोनों देशों की नई सरहद था….

4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला इलाका. परंपरागत रूप से यहां ईसाई धर्म को मानने वाले आर्मेनियन मूल के लोग निवास करते थे. कुछ तादाद में तुर्की मूल के मुस्लिम भी थे. जोसेफ स्टालिन ने एक बदमाशी भरा काम किया था. मूल के लोगों इलाका नगोरनो काराबाख को मुस्लिम बहुल अज़रबैजान के साथ मिला दिया.

लेकिन स्टालिन ने क्यों ऐसा किया?

इसके लेकर दो बात हैं.

एक बात तो ये है कि स्टालिन चाहता था कि छोटे देश आपसी झगड़े में उलझे रहे हैं और USSR की सत्ता को चुनौती ना दें.
कुछ का मत ये है कि नगोरनो काराबाख तुर्क मूल के अज़रबैजान देश को देकर स्टालिन ने तुर्की को खुश करना चाहता था. ताकि तुर्की के USSR में शामिल होने की संभावना बढ़ सके. वजह जो भी रही होगी लेकिन ये बंटवारा करके स्टालिन ने एक और झगड़े की मजबूत नींव रख दी थी. उसी समय आर्मेनिया ने विरोध शुरू कर दिया. आर्मेनिया चाहता था कि नगोरना-काराबाख वाला इलाका उसकी सीमा में होना चाहिए था. तब 1923 में ही स्टालिन ने नगोरना काराबाख को स्वायत्त इलाका बना दिया था लेकिन ये रहा अजरबैजान की सीमा में ही.

स्वायत्त इलाका बनने के बाद क्या हुआ?

काराबाख अज़रबैजान का एक स्वायत्त इलाका बना दिया गया जिसमें …
हालांकि दुनिया ने इस इलाके को आज़ाद नहीं माना था. और फिर 1992 युद्ध हो गया. ये युद्ध 2 साल तक चलता रहा था. 30 हजार लोगों की इसमें मौत चुकी थी. धर्म के आधार पर लोगों का कत्लेआम हुआ. और लाखों लोगों ने इलाका छोड़ दिया. बाद में रूस के दखल देने से दोनों देशों के बीच सुलह हुई. सीजफायर हो गया. और युद्धबंदी में तो ये होता रहता है कि जिसके पास जो इलाका है वो उसके पास ही रहेगा. तो नगोरना-काराबाख अज़रबैजान से मुक्त हो गया, खुद को एक आज़ाद मुल्क घोषित भी कर लिया था, लेकिन दुनिया के किसी देश ने इसको मान्यता नहीं दी और असल में वहां आर्मेनिया का दखल रहा.

मामला कुछ पल के लिए शांत हो गया लेकिन अज़रबैजान ने इस ख्वाहिश को दम तोड़ने नहीं दिया था, कि एक दिन दोबारा नगोरना-काराबाख पर हम कब्जा करेंगे. आधिकारिक रूप से भी नगोरना-काराबाख अज़रबैजान का ही हिस्सा बनेगा. तो आर्मेनिया समर्थित नगोरना-काराबाख के जवानों और अज़रबैजान के सैनिकों के बीच खूब फायरिंग और हिंसा होती रहती है
6 हफ्ते चला था युद्ध

2020 में अजरबैजान ने आर्मेनिया पर फिर हमला कर दिया था। करीब छह हफ्ते चले युद्ध के बाद अजरबैजान की एकतरफा जीत हो गई थी, और उसने विवादित क्षेत्र का बड़े हिस्से को अपने कब्जा में ले लिया था। इस युद्ध में दोनों देशों के 6,500 से भी ज्यादा इसांन मारे गए थे। युद्ध विराम के लिए रूस को फिर आगे आना पड़ा था।

रूस ने करवाया था शांति समझौता करवाया

Nov- 2020 में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने आर्मेनिया-अजरबैजान के बीच एक शांति समझौते करवाया था। दोनों देशों ने शांति समझौते पर साइन किए थे। लेकिन सितंबर 2022 में अजरबैजान ने शांति समझौता तोड़कर फिर से हमला कर दिया। तब दोनों देशों के बीच झड़प में 210 से ज्यादा लोग मारे गए थे।

अजरबैजान की बड़ी आबादी तुर्क मूल के लोग रहते है. इसलिए तुर्की इसका साथ देता है. तुर्की ने एक बार दोनों देशों के रिश्तों को ‘दो देश एक राष्ट्र’ तक कह दिया था. वहीं, आर्मेनिया के साथ तुर्की के कोई आधिकारिक संबंध भी नहीं है. 1993 में जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद बढ़ा तो अजरबैजान का साथ देते हुए तुर्की ने आर्मेनिया से लगी अपनी सीमा बंद कर दी थी.

अजरबैजान की बड़ी आबादी तुर्क मूल के लोग रहते है. इसलिए तुर्की इसका साथ देता है. तुर्की ने एक बार दोनों देशों के रिश्तों को ‘दो देश एक राष्ट्र’ तक कह दिया था. वहीं, आर्मेनिया के साथ तुर्की के कोई आधिकारिक संबंध भी नहीं है. 1993 में जब दोनों देशों के बीच सीमा विवाद बढ़ा तो अजरबैजान का साथ देते हुए तुर्की ने आर्मेनिया से लगी अपनी सीमा बंद कर दी थी.

राष्ट्रपति अलीयेव ने यहां तक कहा, “हमने आर्मेनिया और उसे हथियार देने वाले देशों के सामने अपना रुख साफ कर दिया है। अगर हमारे देश और हमारे लोगों की सुरक्षा को खतरा होता है तो हम इसके खिलाफ बड़ा एक्शन लेंगे। आर्मेनिया हमारे खिलाफ अपनी सैन्य ताकत निरंतर बढ़ा रहा है। वो हमारी सीमा पर अपने सैनिक तैनात कर रहा है। ऐसे में हम चुप बिल्कुल नहीं रह सकते हैं।”

आर्मेनिया को हथियार देने की वजह है कश्मीर

दरअसल भारत , कारबाख को लेकर अजरबैजान और आर्मेनिया में लंबे समय से ही विवाद रहा है। पाकिस्तान और तुर्कि ने अजरबैजान को खुला समर्थन और सैन्य सहयोग भी देते हैं। इसके बदले अजरबैजान कश्मीर के मुद्दे पर खुलकर पाकिस्तान का समर्थन करता है

। पिछले साल भारत में मौजूद अजरबैजान के राजदूत अशरफ शिकालियेव ने कहा था कि हम पिछले 30 साल से अजरबैजान कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ देते आये है।ऐसे में भारत ने पिछले कुछ समय में आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग को और बढ़ाया है। भारत ने पिछले साल में ही पिनाका रॉकेट लॉन्चर का पहला शिपमेंट भेज दिया था। पिनाका की डिलीवरी होने की खबर सामने आते ही अजरबैजान में राष्ट्रपति के सलाहकार हिकामत हाजियेव ने भारतीय राजूदत से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने भारत-आर्मेनिया में बढ़ते रक्षा सहयोग पर चिंता जहिर की थीं।

भारत ने बेचा अरमेनिया को हाथियार

ऐसे में भारत ने पिछले कुछ समय में आर्मेनिया के साथ रक्षा सहयोग को और बढ़ाया है। भारत ने पिछले साल में ही पिनाका रॉकेट लॉन्चर का पहला शिपमेंट भेज दिया था। पिनाका की डिलीवरी होने की खबर सामने आते ही अजरबैजान में राष्ट्रपति के सलाहकार हिकामत हाजियेव ने भारतीय राजूदत से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने भारत-आर्मेनिया में बढ़ते रक्षा सहयोग पर चिंता जहिर की थीं।

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